जमशेदपुर : संतान की दीर्घायु व परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सुहागिन महिलाओं ने रखा जिउतिया का व्रत

सुहागिन महिलाओं ने शुक्रवार को  जिउतिया का निर्जला व्रत रखा। उक्त व्रत संतान के दीर्घायु और पूरे परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। 

जमशेदपुर : संतान की दीर्घायु व परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सुहागिन महिलाओं ने रखा जिउतिया का व्रत
Jamshedpur : सुहागिन महिलाओं ने शुक्रवार को 
जिउतिया का निर्जला व्रत रखा। उक्त व्रत संतान के दीर्घायु और पूरे परिवार की सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। शुक्रवार की शाम सभी महिलाएं भगवान जीमूतवाहन की पूजा-अर्चना करेंगी. इस दौरान जिउतिया व्रत से जुड़ी लोक कथा भी सभी महिलाएं सुनेंगी। शनिवार को पारण के साथ ही व्रत का समापन होगा। मान्यता के अनुसार सुहागिन महिलाएं पुत्र प्राप्ति या पुत्र की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश के आलावा झारखंड में इस व्रत की खास मान्यता है। इस व्रत को क्षेत्रानुसार अलग अलग नामों से जाना जाता है। कहीं कहीं इसे जितिया, जिउतिया या जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। प्रकृति से जुड़ा यह लोक परंपरा का एक  उत्सव है।
 
चील और सियारिन की होती है पूजा
 
जिउतिया पूजा के दौरान सुहागिन महिलाएं भगवान जीमूतवाहन के साथ चील और सियारिन की भी
पूजा करती हैं। गोबर और मिट्टी से सियारिन व चील की मूर्ति पर पूजा-अर्चना के दौरान चूड़ा-दही के अलावे का खीरा व अंकुरित चना का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसी प्रसाद को ग्रहण कर महिलाएं व्रत का पारण करती हैं। मान्यता है कि कुश का जीमूतवाहन बनाकर पानी में उसे डालकर बांस के पत्ते, चंदन, फूल आदि से पूजा करने पर वंश की वृद्धि होती है। पारण के दौरान व्रती महिलाएं पवित्र तालाब या अन्य जलाशयों में जीमूतवाहन राजा के प्रतीक स्वरूप गाड़े गए डाली के साथ मिट्टी व गोबर से बनी चील व सियारिन की प्रतिमा का विसर्जन करती है। 
 
गरुड़ के कोप से नागों की हुई रक्षा
 
 गंधर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। एक दिन भ्रमण करने के दौरान उन्हें विलाप करती हुई नाग माता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नाग वंश गरुड़ के कोप से काफी परेशान है। नाग वंश की रक्षा करने के लिए नागों ने गरुड़ से समझौता किया कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो नागों का सामूहिक शिकार नहीं करेगा। एक दिन नाग माता के पुत्र को समझौते के तहत गरुड़ के सामने जाना था। इसी वियोग में नाग माता विलाप कर रही थी। नाग माता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है। नाग माता को दिए वचन के तहत जीमूतवाहन ने वैसा ही किया। तय समय पर गरुड़ पहुंचा तथा शिला पर लेटे जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ गया। लेकिन जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर देखा तो कपड़े में लिपटा जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया. तब से हर माता अपने पुत्र की रक्षा के लिए जिउतिया व्रत करने लगी।